मर गईं संवेदनाएँ
आदमी की,
रक्त रंजित हो गई हैं भावनाएँ।
लोग सारे
खून में डूबे हुए हैं,
किस तरह के
आज मनसूबे हुए हैं,
फूल के संबंध टूटे
खुशबुओं से,
कंटकों-सी उग रही दुर्भावनाएँ।
आदमी अब
जानवर बन घूमता है,
मोह में पड़
मौत का मुँह चूमता है,
काम करता है हमेशा
वहशियों-सा
रोक पाती क्यों नहीं हैं वर्जनाएँ
नाग के फन
हर जगह तनने लगे हैं,
तक्षकों के
वंश सब बनने लगे हैं,
कृष्ण के अवतार की अब
हर तरफ से
दिख रही है आजकल संभावनाएँ।